Saturday, June 13, 2020

मात्राओं की गणना कैसे करें

मात्राओं की गणना कैसे की जाती है  

मात्राओं की गणना निम्रप्रकार की जाती है-

हिन्दी भाषा के वर्णों को 12 स्वरों और 36 व्यंजनों में बाँटा गया है। सभी व्यंजनों की एक मात्रा (।) मानी जाती है। लघु स्वर अ, इ, उ, ऋ की भी (।) मात्रा ही मानी जाती हैं। जबकी दीर्घ स्वर आ, ई, ऊ, ए, ऐ ओ और औ की मात्राएँ दीर्घ (ऽ) मानी जाती हैं। व्यंजनों पर लघु स्वर अ, इ, उ, ऋ आ रहे हों तो भी मात्रा लघु (।) ही रहेगी। किंतु यदि दीर्घ स्वर आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ की मात्राएँ आ रही हों तो मात्रा दीर्घ (ऽ) हो जाती है।

अर्ध-व्यंजन और अनुस्वार/बिंदु (.)की आधी मात्रा मानी जाती है। मगर आधी मात्रा की स्वतंत्र गणना नहीं की जाती। यदि अनुस्वार अ, इ, उ अथवा किसी व्यंजन के ऊपर प्रयोग किया जाता है तो मात्राओं की गिनती करते समय दीर्घ मात्रा मानी जाती है किन्तु स्वरों की मात्रा का प्रयोग होने पर अनुस्वार (.) की मात्रा की कोई गिनती नहीं की जाती।

आधे अक्षर की स्वतंत्र गिनती नहीं की जाती बल्कि अर्ध-अक्षर के पूर्ववर्ती अक्षर की दो मात्राएँ गिनी जाती है। यदि पूर्ववर्ती व्यंजन पहले से ही दीर्घ न हो अर्थात उस पर पहले से कोई दीर्घ मात्रा न हो। उदाहरण के लिए अंत, पंथ, छंद, कंस में अं, पं, छं, कं सभी की दो मात्राए गिनी जायेंगी इसी प्रकार शब्द, वक्त, कुत्ता, दिल्ली इत्यादि की मात्राओं की गिनती करते समय श, व, क तथा दि की दो-दो मात्राएँ गिनी जाएँगी। इसी प्रकार शब्द के प्रारंभ मेें आने वाले अर्ध-अक्षर की मात्रा नहीं गिनी जाती जैसे स्वर्ण, प्यार, त्याग आदि शब्दों में स्, प् और त् की गिनती नहीं की जाएगी। प्रारम्भ में संयुक्त व्यंजन आने पर उसकी एक ही मात्रा गिनी जाती है। जैसे श्रम, भ्रम, प्रभु, मृग। इन शब्दों मेें श्र, भ्र, प्र तथा मृ की एक ही मात्रा गिनी जाएगी।

अनुनासिक/चन्द्र बिन्दु की कोई गिनती नहीं की जाती। जैसे- हँस, हँसना, आँख, पाँखी, चाँदी आदि शब्दों में अनुनासिक का प्रयोग होने के कारण इनकी कोई मात्रा नहीं मानी जाती।

-रघुविन्द्र यादव 





समकालीन दोहा, नया दोहा या आधुनिक दोहा की विशेषताएं

दोहा

दोहा एक अर्द्धसम मात्रिक छंद है|  यह भारत में प्राचीन काल से ही प्रचलित और लोकप्रिय रहा है| यह संस्कृत से भाषाओँ के विकास के साथ-साथ हिंदी में आया है| संस्कृत में इसे ‘दोग्धक’ कहा जाता था| जिसका अर्थ है- जो श्रोता या पाठक के मन का दोहन करे| इसे दोहक, दूहा, दोहरा, दोहड़ा, दोहयं, दोहउ, दुवह और दोहअ भी कहा जाता रहा है| लेकिन अब लोकप्रिय नाम दोहा है|
दोहा 24-24 मात्राओं वाली दो पंक्तियों और चार चरणों में 13-11, 13-11 के क्रम में कुल 48 मात्राओं से लिखा जाता है| प्रथम और तृतीय चरण का समापन लघु गुरु से और दूसरे तथा चौथे चरण का समापन गुरु लघु से होना अनिवार्य है| 

मानक दोहा-

लोकप्रिय दोहाकार रघुविन्द्र यादव के अनुसार "दो पंक्तियों और चार चरणों में 13-11, 13-11 के क्रम में कुल 48 मात्राओं से लिखा जाने वाला छंद, दोहा कहलाता है| इससे अधिक या कम मात्रा वाली रचना मानक दोहा की श्रेणी में नहीं आती| मानक दोहे के शिल्प की आवश्यक शर्त है कि उसके प्रथम और तृतीय चरण का समापन लघु गुरु से और दूसरे तथा चौथे चरण का समापन गुरु लघु से हो| किसी भी चरण का आरम्भ पचकल और जगण शब्द से न हो| ऐसा दोहे की लय बनाये रखने के लिए अनिवार्य है| यदि कोई रचना ये शर्तें पूरी करती है तभी उसे ‘मानक दोहा’ माना जाता है|" मानक का अर्थ है वह सिद्धांत जो सर्व मान्य हो| 

परम्परागत दोहा-

जो दोहा भक्तिकाल, रीतिकाल या उससे पहले अथवा बाद में रचा गया, उसी दोहे को परम्परागत दोहा कहते हैं| जिसमें भक्ति है, उपदेश हैं, नैतिक शिक्षा है या श्रृंगार रस है| 

समकालीन दोहा/ नया दोहा/ आधुनिक दोहा-

जो दोहा आज लिखा जा रहा है, जिसका कथ्य समकालीन व मौजूदा युगबोध पर आधारित है और जिसकी भाषा भी समकालीन है| उसे ही नया दोहा, आधुनिक दोहा या समकालीन दोहा कहा जाता है| समकालीन दोहा में न तो भक्ति है, न नैतिक शिक्षा या उपदेश हैं और न ही श्रृंगार रस है| 

दोहा दरबारी बना, दोहा बना फ़कीर|
नए दौर में कह रहा, दोहा जीवन पीर||- रघुविन्द्र यादव/वक़्त करेगा फैसला 

विभिन्न विद्वानों ने समकालीन दोहा को विभिन्न प्रकार से परिभाषित किया है| आधुनिक दोहा के पुरस्कर्ता प्रोफेसर देवेन्द्र शर्मा ‘इंद्र’ दोहे की विशेषता कुछ यूँ बताते हैं- “दोहा छंद की दृष्टि से एकदम चुस्त-दुरुस्त और निर्दोष हो| कथ्य सपाट बयानी से मुक्त हो| भाषा चित्रमयी और संगीतात्मक हो बिम्ब और प्रतीकों का प्रयोग अधिक से अधिक मात्रा में हो| दोहे का कथ्य समकालीन और आधुनिक बोध से सम्पन्न हो| उपदेशात्मक नीरसता और नारेबाजी की फूहड़ता से मुक्त हो|”

डॉ. अनंतराम मिश्र ‘अनंत’ दोहे की आत्मकथा में लिखते हैं- “भाषा मेरा शरीर, लय मेरे प्राण, और रस मेरी आत्मा है| कवित्व मेरा मुख, कल्पना मेरी आँख, व्याकरण मेरी नाक, भावुकता मेरा हृदय तथा चिंतन मेरा मस्तिष्क है| प्रथम और तृतीय चरण मेरी भुजाएँ एवं द्वितीय और चतुर्थ चरण मेरे चरण हैं|”

श्री जय चक्रवर्ती समकालीन दोहे को परिभाषित करते हुए कहते हैं- “समकालीन दोहे का वैशिष्टय यह है कि इसमें हमारे समय की परिस्थितियों, जीवन संघर्षों, विसंगतियों, दुखों, अभावों और उनसे उपजी आम आदमी की पीड़ा, आक्रोश, क्षोभ के सशक्त स्वर की उपस्थिति प्रदर्शित होने के साथ-साथ मुक्ति के मार्ग की संभावनाएं भी दिखाई दें|”

श्री हरेराम समीप परम्परागत और आधुनिक दोहे का भेद स्पष्ट करते हुए लिखते हैं- “परम्परागत दोहों से आधुनिक दोहा का सौन्दर्यबोध स्वाभाविक रूप से बदला है| अध्यात्म, भक्ति और नीतिपरक दोहों के स्थान पर अब वह उस आम-जन का चित्रण करता है, जो उपेक्षित है, पीड़ित है, शोषित है और संघर्षरत है| इस समूह के दोहे अपने नए अंदाज़ में तीव्र और आक्रामक तेवर लिए हुए हैं| अत: जो भिन्नता है वह समय सापेक्ष है| इसमें आस्वाद का अन्तर प्रमुखता से उभरा है| इन दोहों में आज का युगसत्य और युगबोध पूरी तरह प्रतिबिंबित होता है|”

डॉ.राधेश्याम शुक्ल के अनुसार, “आज के दोहे पुरानी पीढ़ी से कई संदर्भों, अर्थों आदि में विशिष्ट हैं| इनमे भक्तिकालीन उपदेश, पारम्परिक रूढ़ियाँ और नैतिक शिक्षाएँ नहीं हैं, न ही रीतिकाल की तरह श्रृंगार| अभिधा से तो ये बहुत परहेज करते हैं| ये दोहे तो अपने समय की तकरीर हैं| युगीन अमानुषी भावनाओं, व्यवहारों और परिस्थितियों के प्रति इनमें जुझारू आक्रोश है, प्रतिकार है, प्रतिवाद है|”

रघुविन्द्र यादव का साहित्यिक परिचय

रघुविन्द्र यादव का साहित्यिक परिचय

हरियाणा के कबीर कहे जाने वाले दोहाकार रघुविन्द्र यादव का जन्म 27 सितम्बर, 1966 को नारनौल (हरियाणा) के प्रतिष्ठित किसान परिवार में हुआ|

जन्म और शिक्षा-

हरियाणा के कबीर कहे जाने वाले दोहाकार रघुविन्द्र यादव का जन्म 27 सितम्बर, 1966 को नारनौल (हरियाणा) के प्रतिष्ठित किसान परिवार में हुआ|

आपकी हाई स्कूल तक की शिक्षा नीरपुर के ही वरिष्ट माध्यमिक विद्यालय में हुई, जो उस समय तक हाई स्कूल ही था| नारनौल से बारहवीं पास करने के बाद कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातक और इतिहास विषय में स्नातकोत्तर की उपाधियाँ प्राप्त की| तदुपरांत इसी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता और जनसंचार में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा प्राप्त किया| महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक से शिक्षा स्नातक की उपाधि ली और फिर गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं तकनिकी विश्वविद्यालय, हिसार से मास्टर ऑफ़ मॉसकम्युनिकेशन की डिग्री हासिल की| इसी दौरान आपकी नियुक्ति हरियाणा के व्यावसायिक शिक्षा विभाग में वोकेशनल लेक्चरर के रूप में हो गई| इससे पूर्व आपने दैनिक ट्रिब्यून के लिए रिपोर्टिंग भी की|

प्रमुख कृतियाँ-

अब तक आपके तीन दोहा संग्रह- नागफनी के फूल, वक़्त करेगा फैसला और आये याद कबीर, दो लघुकथा संग्रह- बोलता आईना और अपनी अपनी पीड़ा, दो कुण्डलिया छंद संग्रह- मुझमें संत कबीर और कुण्डलिया कुमुद, एक कविता संग्रह- कविता के विविध रंग तथा एक निबंध संग्रह- कामयाबी की यात्रा सहित कुल 9 मौलिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं|

सम्पादित पुस्तकें-

आपने लगभग एक दर्जन पुस्तकों का सम्पादन भी किया है जिनमें- आधुनिक दोहा, आधी आबादी के दोहे, दोहे मेरी पसंद के, दोहों में नारी, हलहर के हालात, नयी सदी के दोहे, मानक कुण्डलिया, शंखनाद, जीने की राह, पर्यावरण परिचय, अभिनन्दन के स्वर आदि शामिल हैं|

आप शोध और साहित्य की राष्ट्रीय पत्रिका बाबूजी का भारतमित्र का 2009 से संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं|

पुरस्कार/सम्मान

आपको हरियाणा साहित्य अकादमी से साहित्यिक पत्रकारिता के लिए दिया जाने वाला "लाला देशबंधु  गुप्त सम्मान- 2021 (राशि 2.5 लाख रुपये) सहित  दर्जनों शासकीय, सामाजिक, साहित्यिक संस्थाओं से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हो चुके हैं| जिनमें पंजाब कला साहित्य अकादमी, जालन्धर द्वारा विशेष अकादमी सम्मान, बाबू बालमुकुन्द गुप्त पुरस्कार (साहित्य)-2010, रेवाड़ी (हरियाणा), स्व. श्यामसुन्दर ढंड स्मृति सम्मान लालसोट (राजस्थान) और तरुण भारत पर्यावरण रक्षण सम्मान- 2013 शामिल हैं|

शोध कार्य-

आपके पहले दोहा संग्रह ‘नागफनी के फूल’ पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से लघु शोध ‘नागफनी के फूल में सामजिक सरोकार’ सम्पन्न हो चुका है| 

हरियाणा का कबीर-

आपके दोहों में कबीर की तरह अंधविश्वास और पाखंड पर जबर्दस्त प्रहार देखने को मिलता है,| आप अपनी बात बिना किसी लागलपेट के कहने का मादा रखते हैं| इसलिए आपको “हरियाणा का कबीर” और “आधुनिक कबीर” जैसे नामों से पुकारा जाता है| सोशल मीडिया पर आपके दोहों ने लोकप्रियता के नए आयाम स्थापित किये हैं| आज अगर कबीर के बाद सबसे अधिक किसी के दोहे लोगों की जुबान पर हैं तो वे रघुविन्द्र यादव के हैं| आपके 8-10 दोहे तो ऐसे हैं जो करोड़ों बार देखे सुने जा चुके हैं|

“कबीर आज जिन्दा होते तो ये होते आज के दोहे”
“कबीर के आधुनिक दोहे”
“नयी सदी के दोहे”
“बेटा कहता बाप से, तेरी क्या औकात” आदि विभिन्न शीर्षकों से रघुविन्द्र यादव के दोहे कबीर के बाद सर्वाधिक प्रसारित-प्रचारित दोहे हैं| आपने लगभग 2000 दोहों की रचना की है, तीन संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, वहीं  आपके संपादन में 'बाबूजी का भारतमित्र' पत्रिका के दो दोहा विशेषांक प्रकाशित हो चुके हैं| इतना ही नहीं आपके संपादन में छ  दोहा संकलन- आधी आबादी के दोहे, आधुनिक दोहा, दोहे मेरी पसंद के, दोहों में नारी, हलहर के हालात और  नयी सदी के दोहे भी प्रकाशित हुए हैं| 'आधी आबादी के दोहे' में 22 महिला दोहकारों के दोहे शामिल करके आपने अभिनव प्रयोग किया वहीँ ‘दोहों में नारी’ नामक संकलन में आपने केवल महिला विमर्श के दोहे ही शामिल करके पुन: एक नया प्रयोग करके अपने ‘आधुनिक कबीर’ नाम को सही साबित किया है|

आप हरियाणा ही नहीं देश के श्रेष्ठ दोहकारों में से एक हैं, इसलिए आपके दोहे विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और स्तरीय संकलनों में ससम्मान प्रकाशित होते हैं| उत्तर भारत का प्रतिष्ठित हिंदी समाचार पत्र “दैनिक ट्रिब्यून” तो आपके दोहों को सम्पादकीय में भी कोट करता रहा है|

आपने करीब एक दर्जन पुस्तकों की भूमिका/अभिमत लिखें हैं वहीं करीब दो दर्जन दोहा कृतियों की दैनिक ट्रिब्यून और बाबूजी का भारतमित्र के लिए समीक्षा भी की है|

दोहा पर ही आधारित कुंडलिया छंद में भी आप पारंगत हैं| आपके दो कुंडलिया संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, वहीं एक संकलन का आपने सम्पादन भी किया है| आपने बाबूजी का भारतमित्र में देश-दुनिया का पहला कुण्डलिया विशेषांक प्रकाशित करके ऐतिहासिक कार्य किया है|