Saturday, June 13, 2020

रघुविन्द्र यादव का साहित्यिक परिचय

रघुविन्द्र यादव का साहित्यिक परिचय

हरियाणा के कबीर कहे जाने वाले दोहाकार रघुविन्द्र यादव का जन्म 27 सितम्बर, 1966 को नारनौल (हरियाणा) के प्रतिष्ठित किसान परिवार में हुआ|

जन्म और शिक्षा-

हरियाणा के कबीर कहे जाने वाले दोहाकार रघुविन्द्र यादव का जन्म 27 सितम्बर, 1966 को नारनौल (हरियाणा) के प्रतिष्ठित किसान परिवार में हुआ|

आपकी हाई स्कूल तक की शिक्षा नीरपुर के ही वरिष्ट माध्यमिक विद्यालय में हुई, जो उस समय तक हाई स्कूल ही था| नारनौल से बारहवीं पास करने के बाद कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातक और इतिहास विषय में स्नातकोत्तर की उपाधियाँ प्राप्त की| तदुपरांत इसी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता और जनसंचार में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा प्राप्त किया| महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक से शिक्षा स्नातक की उपाधि ली और फिर गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं तकनिकी विश्वविद्यालय, हिसार से मास्टर ऑफ़ मॉसकम्युनिकेशन की डिग्री हासिल की| इसी दौरान आपकी नियुक्ति हरियाणा के व्यावसायिक शिक्षा विभाग में वोकेशनल लेक्चरर के रूप में हो गई| इससे पूर्व आपने दैनिक ट्रिब्यून के लिए रिपोर्टिंग भी की|

प्रमुख कृतियाँ-

अब तक आपके तीन दोहा संग्रह- नागफनी के फूल, वक़्त करेगा फैसला और आये याद कबीर, दो लघुकथा संग्रह- बोलता आईना और अपनी अपनी पीड़ा, दो कुण्डलिया छंद संग्रह- मुझमें संत कबीर और कुण्डलिया कुमुद, एक कविता संग्रह- कविता के विविध रंग तथा एक निबंध संग्रह- कामयाबी की यात्रा सहित कुल 9 मौलिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं|

सम्पादित पुस्तकें-

आपने लगभग एक दर्जन पुस्तकों का सम्पादन भी किया है जिनमें- आधुनिक दोहा, आधी आबादी के दोहे, दोहे मेरी पसंद के, दोहों में नारी, हलहर के हालात, नयी सदी के दोहे, मानक कुण्डलिया, शंखनाद, जीने की राह, पर्यावरण परिचय, अभिनन्दन के स्वर आदि शामिल हैं|

आप शोध और साहित्य की राष्ट्रीय पत्रिका बाबूजी का भारतमित्र का 2009 से संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं|

पुरस्कार/सम्मान

आपको हरियाणा साहित्य अकादमी से साहित्यिक पत्रकारिता के लिए दिया जाने वाला "लाला देशबंधु  गुप्त सम्मान- 2021 (राशि 2.5 लाख रुपये) सहित  दर्जनों शासकीय, सामाजिक, साहित्यिक संस्थाओं से पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हो चुके हैं| जिनमें पंजाब कला साहित्य अकादमी, जालन्धर द्वारा विशेष अकादमी सम्मान, बाबू बालमुकुन्द गुप्त पुरस्कार (साहित्य)-2010, रेवाड़ी (हरियाणा), स्व. श्यामसुन्दर ढंड स्मृति सम्मान लालसोट (राजस्थान) और तरुण भारत पर्यावरण रक्षण सम्मान- 2013 शामिल हैं|

शोध कार्य-

आपके पहले दोहा संग्रह ‘नागफनी के फूल’ पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से लघु शोध ‘नागफनी के फूल में सामजिक सरोकार’ सम्पन्न हो चुका है| 

हरियाणा का कबीर-

आपके दोहों में कबीर की तरह अंधविश्वास और पाखंड पर जबर्दस्त प्रहार देखने को मिलता है,| आप अपनी बात बिना किसी लागलपेट के कहने का मादा रखते हैं| इसलिए आपको “हरियाणा का कबीर” और “आधुनिक कबीर” जैसे नामों से पुकारा जाता है| सोशल मीडिया पर आपके दोहों ने लोकप्रियता के नए आयाम स्थापित किये हैं| आज अगर कबीर के बाद सबसे अधिक किसी के दोहे लोगों की जुबान पर हैं तो वे रघुविन्द्र यादव के हैं| आपके 8-10 दोहे तो ऐसे हैं जो करोड़ों बार देखे सुने जा चुके हैं|

“कबीर आज जिन्दा होते तो ये होते आज के दोहे”
“कबीर के आधुनिक दोहे”
“नयी सदी के दोहे”
“बेटा कहता बाप से, तेरी क्या औकात” आदि विभिन्न शीर्षकों से रघुविन्द्र यादव के दोहे कबीर के बाद सर्वाधिक प्रसारित-प्रचारित दोहे हैं| आपने लगभग 2000 दोहों की रचना की है, तीन संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, वहीं  आपके संपादन में 'बाबूजी का भारतमित्र' पत्रिका के दो दोहा विशेषांक प्रकाशित हो चुके हैं| इतना ही नहीं आपके संपादन में छ  दोहा संकलन- आधी आबादी के दोहे, आधुनिक दोहा, दोहे मेरी पसंद के, दोहों में नारी, हलहर के हालात और  नयी सदी के दोहे भी प्रकाशित हुए हैं| 'आधी आबादी के दोहे' में 22 महिला दोहकारों के दोहे शामिल करके आपने अभिनव प्रयोग किया वहीँ ‘दोहों में नारी’ नामक संकलन में आपने केवल महिला विमर्श के दोहे ही शामिल करके पुन: एक नया प्रयोग करके अपने ‘आधुनिक कबीर’ नाम को सही साबित किया है|

आप हरियाणा ही नहीं देश के श्रेष्ठ दोहकारों में से एक हैं, इसलिए आपके दोहे विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और स्तरीय संकलनों में ससम्मान प्रकाशित होते हैं| उत्तर भारत का प्रतिष्ठित हिंदी समाचार पत्र “दैनिक ट्रिब्यून” तो आपके दोहों को सम्पादकीय में भी कोट करता रहा है|

आपने करीब एक दर्जन पुस्तकों की भूमिका/अभिमत लिखें हैं वहीं करीब दो दर्जन दोहा कृतियों की दैनिक ट्रिब्यून और बाबूजी का भारतमित्र के लिए समीक्षा भी की है|

दोहा पर ही आधारित कुंडलिया छंद में भी आप पारंगत हैं| आपके दो कुंडलिया संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, वहीं एक संकलन का आपने सम्पादन भी किया है| आपने बाबूजी का भारतमित्र में देश-दुनिया का पहला कुण्डलिया विशेषांक प्रकाशित करके ऐतिहासिक कार्य किया है|

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